Wednesday, November 26, 2008

मुहब्बत का फ़र्ज़


पता नहीं क्यों दिल् रंगीले ख्वाब सजा लेता है
क्यों इक नया गम जिंदगी को लगा लेता है !!
जब पता है खवाबो ने टूट ही जाना है फिर क्यों
सूखे पत्तों और टहनियों का घोंसला बना लेता है !!
पर क्या करें कुछ दिल् ही ऐसा दिया खुदा ने
जो हरेक को अपना बना लेता है !!
उनकी पाक मुहब्बत का फ़र्ज़ हम चुकाएं कैसे
जिन्हें माना रब से ज्यादा उन्हें झुकाएं कैसे !!