Wednesday, November 5, 2008
बचपन के खेल
खेल बहुत बचपन मे खेले पर न जाने ये कैसा खेल हुआ
इक यार ऐसा बना बैठे ना बिछुड़ सके न मेल हुआ !!
दिल अपना टूटा कुछ ऐसे टुकड़े टुकड़े बिखर गया
फिर भी इल्जाम हम पर लगा दिल उनका क्यों तोड़ दिया !!
किसको गिला करे आज शिकवा किस से करे हम
दिल ऐसे टुटा है आज किसे बताएं अपना गम !!
हिम्मत टूट रही है जीने का नहीं मन अब मेरा
भ्रम टूट गया है अब मैं समझा था मैं हूँ तेरा !!
खताएं मेरी माफ़ करना बहुत नादान हूँ मैं
आज आखिरी सलाम कर लूं फिर चलता हूँ मैं !!