Tuesday, September 30, 2008

मायूिसयां

तेरी नज्िदिकया मेरा हर गम भुला देती हैं
तेरी मायूिसयां मुझे भी कभी रुला देती हैं!!
भुला दे ज़माने को इस कद्र तूं आज
देख मेरी तरफ न सुन् कोई और आवाज़!!
तेरे इन आंसुओं की कीमत मै जान्ता हूँ खूब
गुमों मे मैं भी इस कद्र चूका हूँ डूब!!
मुझे भी ज़रुरत है तेरे सहारे की आज
शायद यही है मेरे टूट कर प्यार करने का राज़!!
तुझे तो िदलासे िदए मैंने कई बार इस तरह
मुझे कौन राह िदखायेगा आज उसी तरह
न बहा यूं छुप छुप के आंसू बहुत कीमती हैं
बहारें िफर से आएँगी इतना भी यकीन है
महबूब की गौद मे सर रख के मर जाऊँ मैं अब
ज़माने की सुध नहीं मुझे इस कदर अब !!

Saturday, September 27, 2008

हमसाया

रात की इस तन्हाई मे तेरी याद मुझे सताये
तड़प तड़प मैं रह जाऊ मेरे कुछ समझ न आए !!
तेरी आँखों की वो किशश सारी रात मुझे याद आए
िबस्तर पर करवट मैं बदलू नींद मुझे न आए !!
तेरी भीगी आंखे देख िदल मेरा घबराए
हर पल मांगू रब से सुखो की बरसात तुझ पर हो जाये !!
तेरी याद मे जागूँ मैं कब रात गयी कब िदन आया
सुबह की पहली भोर हुई िफर तेरा ही ख़याल आया !!
तुझसे िमलने की चाह ने िफर िदल मेरा तड़पाया
चल पड़ा मे पकड़ राह को जब तक दर तेरा न आया !!
ख़तम हुआ तेरा इंतज़ार अब िदल तेरा धड्काया
छोड़ सभी िचताओं को मैं हूँ तेरा हमसाया !!

चुभन

िमलन के बाद जुदाई क्यों है
प्यार मे ये रुसवाई क्यों है !!
सीने मे प्यार की चुभन क्यों है
िंदल मे आज ऐसी घुटन क्यों है !!
चाह कर भी िंदल मे कोई तमन्ना क्यों नहीं
तू नहीं तो ये िंजदगी भी िंजदगी क्यों नहीं
!!
िकसकी रुसवाई से आज
मै अब डरु
अगर तू नहीं तो
मै अकेला जी कर क्या करू !!
समझता मै भी हूँ इन हालातो को इस कदर
तूं ना िमली मुझे तो भटकता िफरूंगा दर बदर !!
िजदगी मौत से बदतर लगती है तेरे न होने के खयालो से
खुद को क्यों िघरा पाती है बेमतलब के सवालों से !!
नामुमिकन है जीना इक दूजे के िबन अब
ये बात तेरे समझ मे आयेगी कब !!
सचाई से न भाग मेरी बात को मान
बातों को समझ और खुद को पहचान !!
यही सचाई है अब तेरे मेरे प्यार की
तुझसे िमलने से पहले तो िजंदगी ही दुश्वार थी !!

Wednesday, September 17, 2008

धर्म का रंग

बम्ब का कोई जात, मज़हब, धर्म या रंग नहीं होता
हादसों मे मरने वालो के अपनों को रोने के सिवा कोई चारा नहीं होता !!
सियासत दानो को इक नया मसला मिल जाता है
उन्हें इस से क्या कही किसी का परिवार बिखर जाता है !!
कहीं बाढ़ से मे कोई डूबे या धमाके मे कोई मरे
जिनका कोई कमाने वाला न रहे वो परिवार क्या करे !!
हुकूमत का अपना इक बहाना है हर पल एक जैसा
मरने वालों के नाम पर करते है सियासत बाँटते है पैसा !!
आखिर तक कब सहेंगे हम इस दोहरे जुल्मो सितम को इस तरह
गन्दी सियासत से बचेंगे तो मज़हब के फसाद से बचेंगे किस तरह !!
आओ मिलकर कोशिश करे और जवाब ढूंढे इन सवालो के
इंसानियत को समझें और किस्से ख़तम करें इन बवालों के !!
अब तो जाग जाओ वक़्त कुछ ज्यादा नहीं निकला अभी
अगर अब भी न जागे तो कुछ न कर पाओगे फिर कभी !!

Friday, September 5, 2008

क्या हम हैं



जहा देखो हम ही हम हैं
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं
जो देखा उसके दिल मैं तो
मेरे लिए क्या मुहब्बत कम है
यूँ ग़लतफहमी मे जियें कब तक
और ख़ुद पर ज़ुल्म ढाए कब तक
जीना दुश्वार सा लगने लगा है
हमे अब ख़ुद से डर लगने लगा है
ख़ुद से भी डरें तो कब तक
इतना ज़ुल्म ढाए तो कब तक
क्योंकी.......
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं

Thursday, September 4, 2008

वफ़ा क्या है

कोई नही जानता वफ़ा क्या है बेवफाई क्या है
िजसे जो अच्छा लगे वरना यहाँ सचाई क्या है !!
कभी िकसी को प्यार पर होता है शक यहाँ
और कभी कोई जताता है प्यार पर हक यहाँ !!
प्यार के माएने इन्हे अब समझाए कोई
प्यार तो सभी करते है पर जान देता है कोई कोई !!
आज मन मे ठाना है और उन्हें ये बताना है
ये बातें नही खोखली आज मौत से िमलने जाना है !!
जाने कौन सा सलाम आखीरी हो अब हमारा
आज िमल लो गले जाने िफर कब िमलेंगे दुबारा !!

Tuesday, September 2, 2008

अंितम िबदाई

आज मौत मेरे दरवाज़े खड़ी है
अंितम समय िबदाई की घडी है!!
उन्हें है मेरे प्यार पर शक
लगता है मेरा उनपर नहीं कोई हक!!
िजदगी हाथों से िफसल रही है
लगता है मौत मुझे िनगल रही है ै!!
जाने का वक़्त नज़दीक है आया
पर क्यूँ लगा की उसने मुझे है बुलाया!!
कब तलक यूँ देंगे खुद को झूठा िदलासा
अब तो ख़तम हो गयी है जीने की आसा!!
वक़्त आया है जाने का दो िबदाई मुझे
न रोना मेरे िलए अब ये कसम है तुझे!! !!

सचा प्यार

कोई समझाए उसे की प्यार नसीबों से िमलता है
ये ऐसा फूल है जो खुशिकस्मतों के िदलों मे िखलता है !!
ठुकरा दोगे गर इसे तो पछताओगे रोओगे अपने नसीब पर
छुट गया हाथ से सचा प्यार न आएगा िफर से लौट कर !!
अगले जनम की क्या बात करे हम आज िफर से
इस जनम मे न पाया तो अगले जनम की बात करेंगे िकस से !!
पूछूँगा भगवान् से गर िमला कभी िकसी जनम मे
गर देनी थी जुदाई तो क्यों जगाया प्यार िदलों मे !!
मांग लूँगा तुझे उस िदन खुदा से सब कुछ लुटा कर
गर देंगा नहीं वो तो छीन लूँगा अपनी जान भी देकर !!