ना जाने उनके दिल् मे क्या है जो चुपचाप मुझे भुलाये बैठे हैं !! कई बार तो खुदाया यूं लगे है वो मुझे गलत समझ कर बैठे हैं !! खुद ही कहते थे साथ निभाएंगे अब औरों मे मसरूफ होकर बैठे हैं !! खुदा खुश रखना मेरे उन अपनों को जो मुझे याद भी करने से रह गए हैं!!
जहा देखो हम ही हम हैं
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं
जो देखा उसके दिल् मैं तो
मेरे लिए क्या मुहब्बत कम है
यूँ ग़लतफहमी मे जिए कब तक
और ख़ुद पर ज़ुल्म ढाए कब तक
जीना दुश्वार सा लगने लगा है
हमे अब ख़ुद से डर लगने लगा है
ख़ुद से भी डरें तो कब तक
इतना ज़ुल्म ढाए तो कब तक
क्योंकी.......
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं