रोज़ रोज़ की नयी खबरों से परेशान हैं हम
इंसानियत पर बढ़ रहा है धर्मों का ये रंग!!
कोई मंदिर की ज़मीन को रोता यहाँ
कोई मस्जीद के झगडे उठाता वहाँ !!
इंसानियत को रोने वाला कोई नहीं है
सियासत की गर्मी आजकल बढ़ रही है !!
गिरे हुए लोगों का सिक्का चलता है यहाँ
मददगारों कहा जाता है गद्दार यहाँ !!
सियासत का रंग हर मज़हब मे नज़र आता यहाँ
हर िसयासत दान धर्म के नाम पर कमाता यहाँ !!
मुल्क या इंसान की किसको यहाँ पड़ी है
उठो यारो अब ये भी क्या सोचने की घडी है!!
बदलना है कुछ तो इस पुरानी सोच को बदलो
इन सियासत के दलालों को जला कर खाक करदो !!
दुनिया मे इक नया ज़लज़ला लाओ अब
इक ऐसी दुनिया जहां सिर्फ प्यार हो रब !!