Friday, July 25, 2008

लफ्जों का प्यार

मैं जब भी उसे देखता मेरे मन में कुछ होता
मैं समझ नहीं पाता की ये क्या है
एक दिन मैंने उसे अपने प्यार का इज़हार कर दिया
वो हसी और सर को हां मे हिला कर चली गयी
धीरे धीरे हम मिलने लगे प्यार बढता गया
लेकिन मुझे एक बात हर वक़्त सताती
वो कभी भी मेरी किसी बात का बोल कर जवाब नहीं देती
जब भी मे कोई बात कहता वो हस्ती सर हिला देती
मैं समझ नहीं पाता लेकिन मेरी परेशानी बदती गयी
एक दिन उसने मुझे ख़त दिया मैं परेशान था
मैंने ख़त पड़ा मेरे हाथ कांपे मे पत्थर की तरह जम गया
उसने उसमे लिखा की वो बोल नहीं सकती वो गूंगी है
मे सुन्न था क्या करू दिमाग काम नहीं कर रहा
मे उसे बहुत प्यार करता हूँ अपनी जान से जादा
मैं उसे मिला गले से लगाया खूब रोया और कहा
पगली प्यार को लफ्जों की ज़रुरत नहीं
मेरा प्यार मेरी जिंदगी है मेरी जिंदगी मेरी बाहों मे है!!