आज तेरे ही घर मे तेरी ही कलम से तुझे एक ख़त िलखा
िजसमे तेरे ही ख़याल तेरी ही तस्वीर नज़र आयी
तुझ से ही पूछा क्या िलखू तेरे िलए तेरे बारे मे
तेरे ही खयालो मे खोया रहा तेरे ही नगमे गाता रहा
ना जाने इस सब मे कब िदन गुज़रा कब शाम हुयी
मैं ये ही सोचता रहा और क्या िलखू तेरे बारे मे
अब जाने का वक़्त आया है और ये सोच रहा हु
ये ख़त तुझे कैसे दूं जो आज िलखा है
"आज" तेरे ही घर मे तेरी ही कलम से !!