Friday, July 25, 2008

िकस्मत

मेरी खुिशयों मेरी को मेरी ही नज़र लग जाती है
बदनसीबी दो िदन बाद लोट के िफर मेरी पास आती है !!
क्यों होता है यु मेरे साथ इस कदर ये जानता नहीं हूँ मैं
अब कैसे कहूँ के िकस्मत के िलखे को मानता नहीं हूँ मैं !!
खुदा जाने मेरा प्यार कब होगा मेरा ये सोचता हूँ मैं
आंखे बंद हो या खुली बस हर पल उसे ही देखता हूँ मैं !!
िकस्मत का िलखा तो मुझे िमल के रहेगा मेरे आका
मुझे वो दीिजये जो मेरे मुक्कदर मे ना हो
कभी अब ऐसा िदन ना आये के वो मेरे पहलु मे ना हो !!
ऐसा िदन जो आये तो मुझे उठा लेना ऐ मेरे खुदा
मै जी ना पाउँगा अब उसके िबना अगर मे हो गया जुदा !!
जुदाई का गम मुझसे िबलकुल भी सहा जाता नहीं है अब
मौत को गले लगा लूं तेरे िबन जीया जाता नहीं है अब