Tuesday, September 30, 2008

मायूिसयां

तेरी नज्िदिकया मेरा हर गम भुला देती हैं
तेरी मायूिसयां मुझे भी कभी रुला देती हैं!!
भुला दे ज़माने को इस कद्र तूं आज
देख मेरी तरफ न सुन् कोई और आवाज़!!
तेरे इन आंसुओं की कीमत मै जान्ता हूँ खूब
गुमों मे मैं भी इस कद्र चूका हूँ डूब!!
मुझे भी ज़रुरत है तेरे सहारे की आज
शायद यही है मेरे टूट कर प्यार करने का राज़!!
तुझे तो िदलासे िदए मैंने कई बार इस तरह
मुझे कौन राह िदखायेगा आज उसी तरह
न बहा यूं छुप छुप के आंसू बहुत कीमती हैं
बहारें िफर से आएँगी इतना भी यकीन है
महबूब की गौद मे सर रख के मर जाऊँ मैं अब
ज़माने की सुध नहीं मुझे इस कदर अब !!