Wednesday, September 17, 2008

धर्म का रंग

बम्ब का कोई जात, मज़हब, धर्म या रंग नहीं होता
हादसों मे मरने वालो के अपनों को रोने के सिवा कोई चारा नहीं होता !!
सियासत दानो को इक नया मसला मिल जाता है
उन्हें इस से क्या कही किसी का परिवार बिखर जाता है !!
कहीं बाढ़ से मे कोई डूबे या धमाके मे कोई मरे
जिनका कोई कमाने वाला न रहे वो परिवार क्या करे !!
हुकूमत का अपना इक बहाना है हर पल एक जैसा
मरने वालों के नाम पर करते है सियासत बाँटते है पैसा !!
आखिर तक कब सहेंगे हम इस दोहरे जुल्मो सितम को इस तरह
गन्दी सियासत से बचेंगे तो मज़हब के फसाद से बचेंगे किस तरह !!
आओ मिलकर कोशिश करे और जवाब ढूंढे इन सवालो के
इंसानियत को समझें और किस्से ख़तम करें इन बवालों के !!
अब तो जाग जाओ वक़्त कुछ ज्यादा नहीं निकला अभी
अगर अब भी न जागे तो कुछ न कर पाओगे फिर कभी !!