कियूं रखूं अपनी कलम मे स्याही मैं
जब कोई अरमान दिल मे मचलता नहीं!!
नहीं जानता मै कियूं शक करते हैं सब मुझ पर
जब मेरी किताब मै कोई सुखा फूल ही नहीं !!
प्यार तो बहुत करता हूँ उसको मैं पर क्या करुँ
यह पत्थर दिल है की पिघलता ही नहीं !!
जो खुदा मिले तो उस से अपना प्यार मांगूं
पर सूना है की वो किसी से मिलता ही नहीं !!