आजकल हम देखते आ रहे हैं कि धर्म पर राजनीति हावी होती जा रही
है चाहे वह कोई भी धर्म हो ! मंदिर का मुद्दा हो या मस्जिद का राजनीती सबसे उपर
नज़र आती है . या चाहे मुद्दा गुरूद्वारो कि गोलक का हो धर्म से पहले राजनीती नज़र
आती है अयोध्या का मंदिर हो या कुम्भ का मेला हज कि यात्रा हो या ईद का मौका
राजनितिको को तो सिर्फ राजनीति करनी है !!
इसी राजनीती के चलते कई बार सांप्रदायिक दंगे भडके कई मरे कई
घायल हुए कभी 1984 हुआ तो कभी गोधरा कभी उत्तर परदेश जला तो कभी पंजाब कभी गुजरात
जला तो कभी बिहार परन्तु इन सब में कभी कोई राजनितिक नहीं मरा अगर कोई मरा तो वो
है आम आदमी जिसका न तो राजनीती से कोई लेना देना था न किसी धार्मिक संगठन से लेकिन
पिसा तो कौन? केवल आम आदमी, !!
आम आदमी से हमारे जेहन में आज कल अरविन्द केजरीवाल का नाम आता
है जो आज कल दिल्ली मई भूख हड़ताल पर हे और अपना अनशन जारी रखे हैं कुछ लोगो का
कहना है कि अरविन्द कर रहे हैं. पर मेरा मानना है कि चलो दिखावा ही सही परन्तु
दूसरे राजनितिक लोगो से तो अच्छा ही है कम से कम धर्म कि राजनीति तो नहीं कर रहे
बिजली पानी को मुद्दा बनाया है किसी मंदिर मस्जिद को तो नहीं न,
और इसमें सच में आम जनता का भला ही होगा क्योकि आज तक भारत कि
आम जनता धर्म के नाम पर खूब लड़ती आई है जिसका भरपूर फायेदा इस देख के भ्रष्ट नेताओ
ने लिया है लेकिन जिसने देख के लिए कुछ किया उसने सिने पर गोली खायी या बम्ब धमाको
में अपने हाथ पैर ही गवाए हैं लेकिन सत्ता का लोभ नहीं लिया ऐसे कुछ जिन्दा शहीद
आज भी देखने को मिल जाते है परन्तु ऐसे लोग चुनिन्दा ही हैं !!
पापी चाहे कितनी
चतुराई से पाप करे लेकिन
अंत में पापी को
पाप का दंड भुगतना ही पड़ता है !!
लेकिन पापी पाप करता
धर्म कि आड लेकर ही है और यह सोच कर खुश होता है कि किसी को पता भी नहीं चला और
मैंने सब को मुर्ख बना दिया परन्तु उस मुर्ख को यह समझ नहीं आता कि किसी को तो नही
पर भगवान तो सब देखता है और चलो यह भी मान ले कि उसकी किसी धर्म या भगवान में
आस्था नहीं परन्तु वेह खुद तो अपने कुकर्मो को देख ही रहा है लेकिन सत्ता का
अहंकार इतना सोचने कि शक्ति भी छीन लेता है !! किसी शायर ने कहा है
लाख दारा और
सिकन्दर हो गए
आई हिचकी मौत कि
और सो गए !!
लेकिन इस सच को केवल धर्म कर्म वाले व्यक्ति ही समझते हैं
अहंकारी राजनितिक नहीं को सत्ता का नशा इतना होता है कि वह इन बातो से कतई वाकिफ
नहीं होता ,बात वहीँ आ जाती है कि धर्म और राजनीती का क्या कोइ मेल है या नहीं,
अगर धर्म में राजनीती आ जाये तो सर्वनाश होना तय है लेकिन अगर राजनीती में धर्म आ जाये जो कि आज कल संभव
नहीं तो शयेद मानवता का कुछ भला हो जायेगा यही उम्मीद करते है !! भगवान भली करे
परविंदर सिंह कोचर