बैसाखी का नाम ज़ेहन में आते ही हर व्यक्ति का मन झूम उठता है और
इस्सी दिन सीखो के दसवे गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसे कि सिरजना कि थी
और सिख धर्म कि स्थापना से ही जात पात उंच नीच का भेद सिखों के दसवें गुरु श्री
गुरु गोबिंद सिंह ने खत्म कर दिया था
जब उन्होंने ने आम लोगो में से चुन कर पांच प्यारे बनाये उन्हें अमृत छकाया
और उन्ही से खुद अमृत छक कर उंच नीच का भेद खत्म करते हुए सिख धर्म कि स्थापना कि
यह एक बहुत बड़ा और दुनिया का इकलोता ऐसा अचम्भा धरती पर १३ अप्रेल सन १६९९ कि
बैसाखी को आनंदपुर साहिब कि पवित्र धरती पर हुआ था !!
वाह परगटीओ मर्द अगमडा वरियाम अकेला !!
वाह वाह गोबिंद सिंह आपे गुर चेला !!
यह एक ऐसा दिन था जब
मानवता को गुरु साहिब एक नया रूप देने जा रहे थे जिस वक्त एक तरफ मुगलों के
अत्याचार और दूसरी तरफ ऊंच नीच का जेहर फेला हुआ था एक तरफ ज़ालिम औरंगजेब कि
हुकूमत ज़बरदस्ती कश्मीरी पंडितो को इस्लाम कबूल करने को मजबूर कर रही थी ऐसे वक्त
खालसे का जन्म सारी मानवता के लिए एक वरदान साबित हुआ !! खालसा यानि कि खालिस जैसा
उस प्रभु,भगवान,इश्वर उस अकाल पुरख ने भेजा वैसा ही क्योकि अगर मुंडन करवा कर जनेऊ
धारण करवा दो तो हिंदू सुन्नत करवा दो तो मुस्लिम परन्तु उस परम शक्ति ने जैसा
भेजा वैसी ही शक्ल सूरत और भेस में रहना ही खालसा है !! गुरु साहिब ने उस अकाल
पुरख परम परमात्मा के हुक्म से ही खालसे कि सिर्जना कि जो १ बैशाख १३ अप्रेल १६९९
इस्वी का शुभ दिन था ! जिस दिन गुरु ई ने पांच प्यारे सजाये उन्हें अमृत छकाया व् गीदड
से शेर ( बुजदिल से जिंदा दिल व भय रहित) बना दिया !!
सूरा सो पहचानिये जो लड़े दीन के हेत !!
पुर्जा पुर्जा कट मरे कबहू न छाडे खेत !!
अर्थात सूरा यही सुरमा वही है दिलेर वही है जो धर्म कि खातिर
मानवता कि खातिर कुर्बान तो हो सकता अपना रोम रोम कटवा सकता है परन्तु ज़ुल्म व्
ज़ालिम के आगे कभी सर नहीं झुकाता !!
यही है असली खालसे कि पहचान जो दूसरे धर्म कि रक्षा कि खातिर
अपनी जन देने से भी कतई पीछे नहीं हटता !!
गुरु साहिब ने अमृत संचार कर एक जिंदा दिल कौम एक भय रहित खालसा
तैयार किया जो सवा लाख के बराबर अकेला है जो ज़ुल्म और ज़ालिम के खिलाफ हर समय तैयार
है और एक मिसाल है जो कि दुनिया में न पहले कभी हुआ न कभी होगा गुरु गोबिंद सिंह
जी ने 8 साल कि छोटी आयु में हिंदू धर्म पर आए संकट के समाधान हेतु पिता कि क़ुरबानी दी और फिर
चारो पुत्रो कि कुर्बानी इस धरती पर आजतक कि इकलोती मिसाल है इस दुनिया में ऐसी
कोई मिसाल नहीं मिलती जिसमे पिता ने अपने बेटे देश और कौम पर कुर्बान किये हो
सिवाए गुरु गोबिंद सिंह जी के !!
इसी पर कवि जोगी अल्लाह यार खान ने यूँ कुछ इस तरह लिखा है
बस एक ही तीर्थ है हिन्द में यात्रा के लिए
कटवाए बाप ने जहां बेटे खुदा के लिए
भटकते है क्यूँ ? हज करें यहाँ आकर
ये काबा पास है, हर इक खालसा के लिए !!
बैसाखी के दिन गुरु जी न केवल सीखो को बल्कि पूरी मानवता को एक
नायाब तोहफा दिया था जिसकी उन्होंने ने भरी कीमत चुकी थी अपना सारा वंश वार कर....
बैसाखी के इस पावन दिन के मौके पर उन्हें शत शत प्रणाम
वाहिगुरु जी का खालसा
वाहिगुरू जी की फतिह!!
परविंदर सिंह कोचर