दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व प्रधान स. परमजीत
सिंह सरना को उनका अहंकार ले बैठा,
इसमें कोई शक नहीं की उन्होंने ने प्रधान रहते बहुत
काम किये लेकिन शायेद वो ये भूल गए की की सभी कार्य गुरु साहिब की कृपा से ही हुए
हैं न् की सरना के घमंड से क्योकि इतिहास गवाह है की घमंड तो महाबली रावण का भी
नहीं रहा !! स. परमजीत सिंह सरना ने गुरुद्वारा कमेटी के
प्रधान के पद पर रहते जो काम किये उनकी वह वह भी हुयी और कभी उनकी निंदा भी लेकिन
ये भी सच है की गलती उसी से होती है जो काम करे निक्कमे व् निठल्ले व्यक्ति से कभी
कोइ गलती नहीं होती क्योकि वह कुछ करता ही
नहीं तो गलती का होना तो नामुमकिन ही है परन्तु इंसान की बुरी जुबान उसके सारे अछे
किये पर पानी फेर देती है जिस तरह स. सरना की बदजुबानी ने उनके साथ किया और बाकी
उनके द्वारा लिए गए कुछ गलत फैसले उनके उपर भारी पड़े जिसमे से एक 15 नवम्बर को
अकाली दल बादल के दिल्ली के प्रधान मंजीत सिंह जी. के. पर गुरुद्वारा रकाब गंज में
हुआ हमला भी सरना की एक बड़ी गलती साबित हुआ !!
धन भूमि का
जो करै गुमानु ॥
सो मूरखु
अंधा अगिआनु ॥२७८
गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज है की धन और भूमि (ज़मीन)
का जिससे अहंकार हे वह मुर्ख अंधा और अगियानी है !! तो फिर गुरुद्वारा कमेटी के
सदस्य व् प्रधान इतने अहंकारी कैसे हो जाते हैं ? या फिर वः केवल प्रधानगी ही करते
हैं लेकिन गुरु जी के वचनों पर चलते नहीं तो क्या यही कारण है की सरना के अकाली दल
का यूँ पतन हुआ क्योकि इस तरह की हार तो पहले कभी देखने को नहीं मिली,
या शिरोमणि अकाली दल (बादल) द्वारा किया अकाल तख़्त के
मुद्दे का परचार सरना को लेर बैठा ! इन बातो का चिंतन सरना व् साथियों को करना
चाहिए और गुरूद्वारो में जाकर सची सेवा निष्काम सेवा करनी चाहिए और नयी कमेटी के
सदस्यों को भी ध्यान देना होगा की मर्यादा में रह कर गुरूद्वारो की और संगत की सची
सेवा करे अन्यथा चुनाव हर पांच साल में होते हैं यह न हो की इन्हें ये मौका मिला
फिर दोबारा बाहर का रास्ता देखना पड़े ! अपनी जीत से नहीं दूसरों की हर से सबक लो
और गुरु मर्यादा में रहते हुए अपना कार्य करो !! मन में संतोष (संतुष्टि) हो
क्योकि अगर आपको संतोष ही नहीं तो आपकी भूख कभी खत्म नहीं होगी मृगतृष्णा की तरह
आपको हर वक्त भगाती रहेगी!!
बिना संतोख
नही कोऊ राजै ॥
सुपन मनोरथ
ब्रिथे सभ काजै ॥
नई कमेटी पर यह इलज़ाम भी अक्सर लगता आ रहा है कि पंजाब
कि तरह यहाँ भी हालात न बन जाएँ गुरूद्वारो में देरदारो डेरेदारों का बोल बाला न
हो जाये गुरूद्वारो कि मर्यादा से खिलवाड़ न् हो क्योकि गुरु मर्यादा केवल गुरु
ग्रन्थ साहिब और शब्द को गुरु का दर्जा देती है न् कि देहधारी को !!
बाबा नानक जी को जब सिद्धो ने पूछा कि
कवण मूल कवण
मति वेला ॥
तेरा कवणु
गुरु जिस का तू चेला ॥
तो बाबा जी ने कुछ इस तरह जवाब दिया कि
पवन आरम्भ
सतिगुर मत वेला ॥
शब्द गुरु
सुरति धुनि चेला ॥
कमेटी चाहे नयी हो या पुरानी जो गुरु कि बात करेगा
मर्यादा में रह कर सेवा करेगा वही रहेगा अन्यथा अहंकार का सर तो नीचा होना ही है
क्योकि जो उपर कि तरफ देखेगा व ठोकर खाकर गिरगा और जो नम्रता में रहेगा वही बचेगा
!!
नानक नीव जो
चले ॥
लगे न ताती
वाओ ॥
परविंदर
सिंह कोचर