Thursday, December 3, 2009

आहिस्ता आहिस्ता

आज मेरी कलम लिखते लिखते रो पड़ी कहती
तूं अपने सारे दुःख मेरे से क्यों लिखवाता है
उसे पा क्यों नहीं लेता
जिसे जान से बढ़कर चाहता है !!
फिर मेरे दिल ने जवाब दिया
जो मै उसे पा सकता
तो तुझे क्यों रुलाता
आहिस्ता आहिस्ता अपनी जान
तेरी स्याही की तरह क्यों सूखता !!