आज मेरी कलम लिखते लिखते रो पड़ी कहती तूं अपने सारे दुःख मुझ से क्यों लिखवाता है उसे पा क्यों नहीं लेता जिसे जान से बढ़कर चाहता है !! फिर मेरे दिल ने जवाब दिया जो मै उसे पा सकता तो तुझे क्यों रुलाता आहिस्ता आहिस्ता अपनी जान तेरी स्याही की तरह क्यों सूखता !!
जहा देखो हम ही हम हैं
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं
जो देखा उसके दिल् मैं तो
मेरे लिए क्या मुहब्बत कम है
यूँ ग़लतफहमी मे जिए कब तक
और ख़ुद पर ज़ुल्म ढाए कब तक
जीना दुश्वार सा लगने लगा है
हमे अब ख़ुद से डर लगने लगा है
ख़ुद से भी डरें तो कब तक
इतना ज़ुल्म ढाए तो कब तक
क्योंकी.......
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं