
कातिल भी बन जाते हैं खुदा कभी कभी !
डुबो देते कश्ती को मलाह कभी कभी !!
बिखर जाती है खुशबू मेरे हर तरफ
बदन तेरा जो छु के आये हवा कभी कभी!!
ज़ख्म तेरे हिज्र का और गहरा हो रहा
करती नहीं असर शायद दवा कभी कभी !!
बन रहबर राह दिखाना है मेरा काम
पर ढूंढ़ता हूँ खुद का पता कभी कभी !!
वैसे नहीं शोकीन अच्छी सूरतों का मै
पर लूट लेती किसी की अदा कभी कभी !!
टूट ही जाते हैं सब्र के बांध आखिर
जब चढ़ के आये यादों की घटा कभी कभी!!