खुदा मरने पर पूछे ख्वाइश मेरी मेरी आखिरी ख्वाइश तू हो बोल न हो जुबां के पास तेरे घर की तरफ मेरा मुँह हो हाथ लगा के देख मेरी धडकनों मे मेरी साँसों मे तू ही तू हो मांगू अगले जनम मे भी तुझे मैं जिस्म और तू मेरी रूह हो
जहा देखो हम ही हम हैं
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं
जो देखा उसके दिल् मैं तो
मेरे लिए क्या मुहब्बत कम है
यूँ ग़लतफहमी मे जिए कब तक
और ख़ुद पर ज़ुल्म ढाए कब तक
जीना दुश्वार सा लगने लगा है
हमे अब ख़ुद से डर लगने लगा है
ख़ुद से भी डरें तो कब तक
इतना ज़ुल्म ढाए तो कब तक
क्योंकी.......
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं